जैसे सहरा में पानी का दरिया हँसा हो....
बिलखते दरख्तों की मुस्कान बन कर
मुहब्बत की बारिश को बरसा गया वो....
मुफ़लिस से जीवन में खुशियों को भर के
उम्मीदों की नई पंख बन कर उड़ा वो....
सहारा है मेरे इस तनहा सफ़र का
भरोसे उसी के ये राही चला हो....
कभी कभी वक्त-ए-हालात बदल जाते हैं
हंसती हुई आंखों के भी छाल बदल जाते हैं....
मुस्कुराने का जो दावा करते रहते हैं ताउम्र
उन होठो की मुस्कान के भी चाल बदल जाते हैं....
ए अपने हैं ए गैर, सारी बातें हैं बेकार
ज़रूरत-ए-वक्त पर इंसान के व्यवहार बदल जाते हैं....
ए मेरे हालात है या किस्मत मेरी ऐसी है
जब सोचने बैठा तो अंजाम बदल जाते हैं....
हर दर्द की तासीर है खुशबू-ए-मुहब्बत
जो इश्क़ में जीते हैं उनके नाम बदल जाते हैं....
आने लगी है शायद फ़िर किसी की याद....
ज़ख्म-ए-सज़र सूख चुके थे सालों पहले
जन्मा है फ़िर एक पौधा वर्षों के बाद....
रूठा था सावन ज़मीं की ज़फाई से
जाने होने लगी कैसे बेमौसम बरसात....
मेरे उजडे घर का फ़साना जानती है दुनिया
खाक़ उडाई उसी ने जिसने लगाई थी आग....