बहुत धूप है थोडी शाम दे दे।
मै था गुमराह राही तेरी चाह में
ऐसी कश्ती पर था जो थी मजधार में
ना है कश्ती का दोष ना किसी राह की
मेरे कदमो को ही इल्ज़ाम दे दे
बहुत धूप है थोडी शाम दे दे।
सुबह जब साँस लेती है
हवा जब मुस्कुराती है
तो रात के बिस्तर से
सोयी उम्मीद उठती है।
होठ कपकपाती हुई खुलती है
फिर नज़र कुछ तलाशती है
एक अनजानी ख्वाहिश लिये
आशाएं आंख मलती है
धड़कने चलती है फिर
नए जोश और उमंग से
कि शायद आज
वक़्त के किसी मोड़ पर तुम मिलोगे।
हाँ मन यही सपने बुनती है
नज़रे तुम्हारी राह तकती है।
ग़म के आगोश में जब ज़ख्म करवट लेता है।
तासीर घाव का कुछ इस क़दर बेचैन किया।
जैसे कल की नहीं आज़ की बात लगता है।
दीवारों को सुनाता हूँ कहानी अपनी।
इस शहर में मेरा कोई नहीं रहता है।
न जुस्तजू किसी की न ख्वाहिशें किसी का।
फ़िर क्यों किसी की बात करता है।
ख़लिश है मुकद्दर फ़िर क्यों कोई बदनाम।
वैसे अपना ही अपनों का दिल तोड़ता है।
ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं
जो करीब है वही दूर होते हैं।
लोग मिलते हैं फ़िर बिछड़ते हैं
ज़िन्दगी के बस यही दस्तूर होते हैं।
इस भाग दौड़ की दुनिया में
पैसों का चेहरे पर गुरूर होते हैं।
इश्क की राह चलने वालों को
केवल तन्हाई नसीब होते हैं।
दुश्मनों के भी कुछ उसूल होते हैं
मेरे दोस्त ही मेरे रक़ीब होते हैं।
बंद आँखे, ख़्वाब हर महफूज़ होते हैं
पलक खुलते सारे सपने चूर होते हैं।
तिनका चुन चुन घोंसला बनाती माँ है
पर निकलते ही परिंदे दूर होते हैं।
31 टिप्पणियां:
एक अनजानी ख्वाहिश लिये
आशाएं आंख मलती है
धड़कने चलती है फिर
नए जोश और उमंग से
कि शायद आज
वक़्त के किसी मोड़ पर तुम मिलोगे।
हाँ मन यही सपने बुनती है
नज़रे तुम्हारी राह तकती है।
बहुत बढ़िया लगी यह पंक्तियाँ ..
दुश्मनों के भी कुछ उसूल होते हैं
मेरे दोस्त ही मेरे रक़ीब होते हैं।
Kya baat hai...lajawab.
Neeraj
दुश्मनों के भी कुछ उसूल होते हैं
मेरे दोस्त ही मेरे रक़ीब होते हैं।
बंद आँखे, ख़्वाब हर महफूज़ होते हैं
पलक खुलते सारे सपने चूर होते हैं।
तिनका चुन चुन घोंसला बनाती माँ है
पर निकलते ही परिंदे दूर होते हैं।
वाह ! वाह ! वाह !
लाजवाब ! बहुत बहुत सुंदर !
ग़म के आगोश में जब ज़ख्म करवट लेता है।
एक गुज़रा हुआ कल आँखों से टपकता है।
ख़लिश है मुकद्दर फ़िर क्यों कोई बदनाम।
वैसे अपना ही अपनों का दिल तोड़ता है।
बहुत ही सुन्दर भाव हैं. मैं हमेशा आपका ब्लॉग पढता हूँ.. लेकिन इस बार आपने अपनी अभिव्यक्ति को जो शब्द दिए हैं वो वाकई लाजवाब है..
तिनका चुन चुन घोंसला बनाती माँ है
पर निकलते ही परिंदे दूर होते हैं।
भावपूर्ण पंक्तियाँ, स्वागत.
क्या बात है , बहुत सुंदर लिखा आप ने .
धन्यवाद
सुन्दर अभिव्यक्ति. आभार.
ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं
जो करीब है वही दूर होते हैं।
लोग मिलते हैं फ़िर बिछड़ते हैं
ज़िन्दगी के बस यही दस्तूर होते हैं।
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर
दुश्मनों के भी कुछ उसूल होते हैं
मेरे दोस्त ही मेरे रक़ीब होते हैं।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दिल को छु गई....
राजीव करुणानिधिजी
तिनका चुन चुन घोंसला बनाती माँ है
पर निकलते ही परिंदे दूर होते हैं।
बहुत सच्ची अभिव्यक्ति है और लगता है जीवन का सार भी यही है।
बंद आँखे, ख़्वाब हर महफूज़ होते हैं
पलक खुलते सारे सपने चूर होते हैं।
तिनका चुन चुन घोंसला बनाती माँ है
पर निकलते ही परिंदे दूर होते हैं।
इस सुंदर अभिव्यक्ति के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ ,अम्माजी के ब्लॉग पर आकर रचना पंसद करने के लिए आभार... मेरा ब्लॉग ये है...
http://www.dilkedarmiyan.blogspot.com/
ग़म के आगोश में जब ज़ख्म करवट लेता है।
एक गुज़रा हुआ कल आँखों से टपकता है।
ख़लिश है मुकद्दर फ़िर क्यों कोई बदनाम।
वैसे अपना ही अपनों का दिल तोड़ता है।
wah..wah ...!! Rajib ji sabdon pr pakad bhot acchi hai bhav bhi acche hain ....chu gayi...!!
bhai ji aapki post bahut achchi lagi
sundar bhaav
सुंदर भाव है. आपकी कविता पढ़के अच्छा लगा. अगले पोस्ट के इंतजार में ..
bahu achchi kavita aur gazlen hain...aabhar
तिनका चुन चुन घोंसला बनाती माँ है
पर निकलते ही परिंदे दूर होते हैं।
Bahut khub.
वाह क्या खूब लिखा है आपने
ज़बरदस्त ग़ज़लें है आपकी लिखी हुई. आज आपका एक और चेहरा सामने आया है. आभार.
शानदार रचनाएँ..बधाई.
दीवारों को सुनाता हूँ कहानी अपनी।
इस शहर में मेरा कोई नहीं रहता है।
सही लिखा है आपने. आभार.
बहुत अच्छा...यूँ ही लिखते रहिये.
kya khoob likha hai..aapka post dil ko chhu gayi..
वाह राजीव भाई ।क्या लाजबाव कविताई और शायराना कलाम आपने पेश की है । पढ़ा तो लगता है कि किसी शायर की कलम से है । बहुत अच्छा धन्यवाद
Zindagi ke dastur ko bahut accha bayan kiya hai aapne.
सुंदर रचना के लिए साधुवाद.
बहुत सुंदर रचना .
बधाई
इस ब्लॉग पर एक नजर डालें "दादी माँ की कहानियाँ "
http://dadimaakikahaniya.blogspot.com/
sundar kavita aur gazlon ki barsat karte rahiye.
aur hame yun hi barsat ke pani se sarabor karte rahiye
aapko tahe dil se aabhar
आपने साँसे रोकदी इतना गम........ कलेजा छलनी हो गया. शानदार लेखनी. बधाई
RAJIEEV JI NAMASKAR,
BAHUT ACHHI LAGI AAPKI RACHNAYEN....
AUR SACH MANIYE DIL KO ANDAR TAK CHHU GAI AUR MERI AANKHEN BHAR AAI
RAJIV JI AISA KYUN HOTA HAI KI KOI KISI KI ZINDAGI MEN IS TARAH SE CHALI AATI HAI AUR BAN JATI HAI USKE SHARIR KI LAHU AUR DAUDNE LAGTI HAI LAHU KE SAATH, BAN JATI HAI SINE KI DHADKAN AUR DHADKNE LAGTI HAI SINE KE SAATH...
CHALI AATI HAI JAB BHI PARESHAN HOTI HAI DAUD KAR USKE AAGOS MEN AUR SUKUN KI NIND LETI HAI.... AUR FIR ACHANAK CHALI JATI HAI KISI SINE KO KHALI CHHODKAR AUR KEHTI HAI THIK SE RAHNA JAB KI JANTI HAI WO KI USKE BINE WO YA TO MAR JAYEGA YA PAGAL FIR BHI WO APNE GHAR WALON KI BAAT KEH KAR CHALI JATI HAI SARI ZINDAGI USE TADAPNE KE LIYE AKELA CHHODKAR
KYUN KYUN KYUN
KYA YE GALAT NAHIN HAI ... AGAR GALAT HAI TO ISMEN US LADKE KA KYA DOSH JISNE USKO IS TARAH PYAR KYA KI KHUD KO HI BULA BAITA AUR AAJ WO AADHA PAGAL SA HO GAYA HAI IS INTEZAR ME KI USKI AAWAZ SUN KAR AUR USKO DEKHKAR USKI CHETNA WAPAS AA JAYEGI
PAR
PLEASE REQUEST KIJIYE USSE KI WO EK INSAN KI ZINDAGI BACHA LEN
RAJ
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