हिन्दुस्तान में प्रेस का आगाज़ सम्राट अशोक के ही समय में हो चूका था, जब कलिंगा युद्ध से जुडी जानकारियाँ शिलालेख पर खुदाई जाती थी। मुग़ल शासक भी एक दुसरे को खबर मुहैया कराने के लिये न्यूज़ लेटर का इस्तेमाल किया करते थे। भारत में प्रेस की स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी ने 'बंगाल गैजेट' अखबार को शुरू कर किया। वही पहला प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना १६७४ में बम्बई में हुई। पर टेलीविजन १५ सितम्बर १९५९ को UNESCO, USA, Philips India और भारत सरकार के साझा प्रयास से शुरु हुई। पहला हिंदी न्यूज़ बुलेटिन का प्रसारण १५ अगस्त १९६५ को हुआ, जबकि अंग्रेज़ी न्यूज़ ३ दिसम्बर १९७१ को प्रसारित हुआ। १९९० में केबल टीवी की शुरुआत ने टीवी की दुनिया में क्रांति ला दी। धीरे-धीरे बड़े शहरों से बाहर निकल कर टेलीविजन ने छोटे शहरों और कस्बों को अपना घर बनाया। अब टेलीविजन आम लोगों की जरूरत बनता जा रहा था। अखबार और रेडियो की लोकप्रियता को इस बुद्धू बक्से ने ज़ोरदार चुनौती देनी शुरू कर दी। तब पत्रकार अपने आधे घंटे का न्यूज़ बेस्ड प्रोग्राम दिखाने के लिये दूरदर्शन का मोहताज हुआ करते थे। ९० के आखरी दशक में चौबीस घंटे प्रसारित होने वाले न्यूज़ चैनल के आगाज़ ने मीडिया को नई शक्ति दी। इसकी अपार लोकप्रियता देख कुछ विदेशी टीवी नेटवर्कों ने भी 24/७ न्यूज़ चैनल की शुरुआत की। बड़े शहरों की बड़ी ख़बर के साथ-साथ छोटे शहरों की छोटी-छोटी खबरें भी सुर्खियाँ बनने लगी। भ्रष्टाचारी बरबाद होने लगे, अपराधी गिरफ़्तार होने लगे, सफ़ेदपोश बेनकाब होने लगे। घूसखोरी-कमीशनखोरी अब सुरक्षित नहीं रही, शोषितों को जुबान मिल गई, और तभी से मुहीम तेज़ हो गई इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर तालाबंदी की. वही कोशिश जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में तेजी से फ़ैल रहे 'प्रेस' पर लगाने के लिये की थी। उसका असर भी हुआ, जब पहली बार १७९५ में प्रेस सेंसरशिप मद्रास में लागू हुआ। एक के बाद एक कई तरह की पाबंदी प्रेस पर जबरन लाद दिए गए। हद तो तब हुई जब १८२३ में पहला प्रेस ऑर्डिनेंस इशू हुआ और प्रेस पर पेनाल्टी-फ़ाइन भी जारी कर दिया गया। आज़ादी की जंग के वक़्त प्रेस को मजबूत बनाने का बीड़ा उठाया महात्मा गाँधी, नेहरु, लाला लाजपत राय, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, अरबिंदो घोष और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने। गाँधी जी ने अगस्त १९४२ को 'यंग इंडिया' में लिखा कि ''It is better not to issue newspapers than to issue them under a feeling of suppression''. फिजूल की बंदिश प्रेस का कुछ बिगाड़ तो नहीं पाई उल्टे प्रेस धीरे-धीरे आवाम की आवाज़ बनता चला गया। टेलीविजन के भारत में जन्म लेने से पहले ही समाज के ठेकेदारों ने इसके दुष्प्रभाव की जमकर वकालत की थी। इनके विरोध की वजह थी कि समाज और संस्कृति पर इसका बुरा असर पड़ेगा। पर हुआ ठीक उल्टा, टीवी के आने से समाज निर्माण में काफी मदद मिली। शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति को ग्लोबल इमेज़ मिला। आये दिन मीडिया को लेकर बहस होती रहती है पर अबकी बार सरकार जो तानाशाही रवैया दिखा रही है वो भारत में मीडिया आन्दोलन को हवा दे सकती है। मीडिया अपना एथिक्स और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी बखूबी जनता है। जर्नलिज्म नेता, नौकरशाह और न्यायपालिका की जागीर नहीं बन सकता है। यह स्वतंत्र, स्वछंद और स्पष्ट था, है और रहेगा। कभी ब्रिटिश कंपनी अपनी साख बचाने के लिये मीडिया पर कानून का शिकंजा कास दिया था वही आज कुछ भ्रष्ट नेता, मंत्री और अफसर अपनी भ्रष्टाचारी छुपाने के लिये इसपर अंकुश लगाना चाहते है। जजों और वकीलों के बिकने की खबर, नौकरशाहों और अभियंताओं की अकूत संपत्ति की खबर से जो बौखलाहट सामने आई उसी का नतीजा है प्रेस को गुलाम बनाने की साजिश। लोकतंत्र की बिनाह पर काबिज़ सरकार की 'प्रेस' पर लगाम कसने की बात कही से भी लोकतान्त्रिक नहीं लगती है। सरकार को ये समझना चाहिए कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया अपनी यंग एज से गुजर रहा है और इसे अभी और मजबूत और बेबाक बनाने की जरूरत है। नियम बने, कड़े नियम बने पर ऐसे नियम मीडिया को खुद ही बनाने चाहिए न कि ऐसे ब्यूरोक्रेट्स के हाथ की कठपुतली बना देनी चाहिए जिससे इसका अस्तित्व ही ख़त्म हो जाय। सरकार का काम है मीडिया को सहयोग करना, समय समय पर बैठके करना और तमाम जरूरी सुझाव देना जिससे देश की अंदरूनी हालत में सुधार हो सके।
Ebook Free Von Punkt zu Punkt - 1 bis 60. Malbuch ab 5 Jahre, by Vicky Bo
Auffinden dieser Von Punkt Zu Punkt - 1 Bis 60. Malbuch Ab 5 Jahre, By
Vicky Bo a...
23 टिप्पणियां:
मीडिया को दबाने की कोशिश हमेशा से होती रही है क्योंकि सच्चाई से सफेदपोश हों या नौकरशाह सभी डरते है. पर मीडिया को दबाने की कोशिश जब भी होगा मीडिया और मजबूत होगी..
aapka ye aalekh parh lene se kisi ki jaankaari meiN izaafa hona laazim hai.
aap bahot mehnat se kaam kr rahe haiN..hm sb ki duaaeiN aap sb ke saath haiN.
---MUFLIS---
मीडिया समाज का आइना हैं....लेकिन आज ये मिशन न होकर Profession भर रह गया है....खबरें केवल TRP को देख कर दिखायी जाती हैं....Print या Electronic दोनों ही मीडिया अच्छा profit देने वाले व्यापर बनकर रह गए हैं....जनता मीडिया को आज भी वही सम्मान देती है, लेकिन अगर मीडिया ने अपना चेहरा नहीं बदला तो जल्द ही जनता का भरोसा मीडिया पर से उठ जाएगा.....
अभी अभी आपने ब्लॉग लिखा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए और अभी अभी मैंने न्यूज हैडिंग देखी जिसमें प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि प्रेस की स्वतंत्रता बनाए रखी जाएगी। देखा कितनी ताकत है सच्चाई में ।
........ सादर सहित
.........अतुल शर्मा
निःसंदेह मीडिया पर सरकारी प्रतिबन्ध नहीं लगने चाहिए . लेकिन प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों ही माध्यमों को अपने गिरेबान में भी झाँक कर देखना चाहिए. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की गैर जिम्मेदारी मुम्बई -घटना के दौरान जमकर प्रदर्शित हुई. प्रिंट मीडिया भी दबाव बनाने और पीत-पत्रकारिता के लिए पहले से ही बदनाम है.
सच कहा आपने..
केंद्र सरकार की तरफ से न्यूज चैनलों पर अपनी मनमर्जी थोपने की खतरनाक कोशिश की जा रही है। Cable Television Network Rule के प्रावधान में बदलाव करते हुए जो गाइडलांइस तैयार की गई है वो अगर लागू हो गई तो समझिए न्यूज चैनलों की आजादी का गला घोंट दिया गया। लोकतंत्र के चौथे खंभे को ध्वस्त कर उसे अपना गुलाम बनाने की कोशिश कर रही है सरकार। रेगुलेशन लागू हो गया तो आने वाले दिनों में समाज और सरकार से जुड़े किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन या जनआक्रोश को न्यूज चैनलों की खबरों में जगह देना नामुमकिन होगा।
मीडिया को दबाने की साजिश कभी कामयाब नहीं हो पायेगी. हम सब आपके साथ हैं.
safar sahab media ke bare me bahot hi rochak aur achhi jankaari di aapne bahot hi badhiya likha hai aapne...
dhero badhai sahab aapko..
meri nai gazal jaldi hi aap sab ke samane aane wali hai...
regards
arsh
ham bhi hain aapke saath
सच को दबाने विद्या आज तक किसी भी होशियार के पाले नही पड़ा, अब क्या पड़ेगा. सरकार की नाकाम कोशिश है, जो कभी भी किसी भी सूरत में नही पुरा नही होगा. आपके साथ कुमकुम.
bahut hi sahi prastutikaran hai media ko lekar,jaagrukta laane ke liye zaruri hai
press ko dabane ki safadposho ki sazish se media majboot hui hai, par media ko v ab khud mein sudhar lane ki pahal karni hogi, bhoot-preat aur dayan wali khabron se logo ko bhramit karna band karna hoga....
वाहवा... कमाल की जानकारी.. वाह.....
Vaastav me swatantra media aur loktantra ek dusre ke purak hain.Agar press ki azadi par kutharaghat hota hai to loktantra ki jaden bhi kamjor hoti hain.
mediya ki bare mein kuch na he poucho to aacha hai yaar
Site Update Daily Visit Now And Register
Link Forward 2 All Friends
shayari,jokes,recipes and much more so visit
copy link's
http://www.discobhangra.com/shayari/
आप तमाम आगंतुकों को मुझे अपना कीमती वक़्त और टिप्पणी देने के लिये सादर धन्यवाद.
जब लिखते है तो आप छा जाते है । इसबार अच्छा लिखा है आपने । बस इस आलेख में कुछ कहना चाहूंगा । मीडिया समाज का आईना होता है । लेकिन राजीव जी प्रेस क्लब में जानेवाला और शराब पीने वाला प्रत्रकार क्या समाज को रास्ते दिखा सकता है । भर दिन नशेड़ी जीवन व्यतीत करता है एक पत्रकार । क्या यही हमारे समाज का चरित्र है । कहने को तो बहुत कुछ है । लेकिन शुक्रिया
democracy me press ka matahavpuran sthan hai . usko azad hona bahut jaruri hai
सही सुझाव दिए हैं आपने. मीडिया को परिपक्व होने का अवसर दिया जाना चाहिए. साथ ही मीडिया भी अपनी सामाजिक जिम्मेवारी समझे. झारखण्ड के एक और ब्लौगर से मिल अच्छा लगा.
हर पक्ष के दो पहलू होते है यही नियम मीडिया पर भी लागू होता है
राजीव जी, आपके लेख में बहुद दम है। मैंने पहली बार आपके ब्लॉग को विज़िट किया। बहुत अच्छी जानकारी मिली मुझे। मैं चाहता हूं कि आप हमारे कम्युनिटी ब्लॉग रांचीहल्ला में भी योगदान दें। अगर आपको कोई परेशानी नहीं है, तो मुझे कृपया अपना जी-मेल एड्रेस भेज दें। मैं आपको एक लिंक भेजूंगा, आप सदस्य बन जायेंगे, तो इससे रांचीहल्ला की रौनक बढ़ेगी।
मेरा मेल एड्रेस है - nadeemjagran@gmail.com
किसी प्रकार की जानकारी चाहते हैं, तो कृपया मेरे मोबाइल पर कॉल कर सकते हैं. मैं रांची का ही रहनेवाला हूं।
09835193065
09852909234
yeh sach ki media ko dabaya ya jhukaya nahi ja sakta hai. bare bare tanasah bhi media ka kuch nahi bigar sakay. media khud me powerful hai. lekin aaj media ka swarup bhi badalta ja raha hai. mahanagar ki choti ghatna bhi breaking news banta hai lekin kabhi khabhi chotay town ki bari se bari ghatna bhi nation media me apni jagah nahi bana pati hai.
एक टिप्पणी भेजें