Ebook Free Von Punkt zu Punkt - 1 bis 60. Malbuch ab 5 Jahre, by Vicky Bo
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Vicky Bo a...
18 नवंबर 2008
खेत की खातिर
कभी सोने की चिडियां कहा जाने वाला हमारा देश सोने का एरोप्लेन बन चुका है। विश्व की महाशक्ति, एशिया का स्वर्ग और चाँद पर पहुँच। हमने सबकुछ तो हासिल कर लिया पर एक चीज़ भूल गए.....वो है हमारा खेत, हवा, जंगल और पानी। आज हम जो कुछ भी हैं सब धरती की देन है। खाने के लिए अनाज, पिने के लिए पानी, साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा और विकास के लिए खनिज। हमने चाँद पर तिरंगा तो फहरा लिया पर बाढ़ से बेहाल गरीबों की समस्या को नही समझ पाये। हम क्रिकेट में सबसे आगे तो हैं पर मुनाफ जैसे खिलाडी क्रिकेट में क्यों नही आते, नही समझ पाये। हम अमीर तो बन गए पर विदर्भ के मरते किसानो की मजबूरी नही समझ पाये। आज एड्स से बचने के तरीके रोचक अंदाज़ में बताये जाते है, पर ये नही बताया जाता कि गन्दा पानी पिने से हर साल लाखों लोगों कि मौत होती है। जितने लोग प्रदूषित हवा, प्रदूषित जल से होने वाली बीमारिओं से मरते हैं शायद ही एड्स से मरते होंगे। मलेरिया, फलेरिया, कालाजार, डेंगू, हार्ट प्रोब्लम, लंग्स की तमाम बीमारी, इन्तेस्ताइन की बीमारी, किडनी इन्फेक्शन, आँख की बीमारी, बहरेपन, गंजापन, स्किन प्रोब्लम आदि ऐसी तमाम बीमारियाँ पर्यावरण प्रदूषण की देन है। पर इस बाजारवाद में पैसा ही सब कुछ करवाता है। एड्स में पैसे की कमाई है इसलिए एड्स आज सबसे बड़ी बीमारी है। देश की अमूमन सारी नदियाँ कचरे से पट चुकी है। सारे पहाड़ नंगे हो चुके हैं। जंगल मैदान में तब्दील हो चुका है और खेत की जगह अपार्टमेन्ट ने ले ली है...पर परवाह किसे है ? जब कोई आपदा आती है तभी हम जागते हैं। तरक्की के मायाजाल ने हमें इस कदर अँधा-बहरा कर दिया है कि सिर्फ़ सुनामी और जलजला ही हमें परेशान कर पाती है। फैक्ट्री के कचरे से जहाँ नदी ज़हर बन चुकी है वहीं प्लास्टिक और रसायनिक कचरे ने खेत की मिट्टी को बंजर बना दिया है। और तो और, जंगल की लकडी अवैध व्यापार का शिकार है। जिसने हमें इतनी ऊंचाई दी है उसी को खोखला कर हम अपनी ही नींव कमजोर कर रहे हैं। जागो मेरे भाई जागो। अपनी मिट्टी की रक्षा करो। हम सब को मिल कर हमारे पर्यावरण को स्वच्छ बनाना होगा, इसे प्रदूषण से बचाना होगा। बेजुबान जानवरों को शिकार होने से बचाना होगा। यही हमसब के हित में है।
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7 टिप्पणियां:
आज का दौर बाजारवाद का है। बाज़ार को जिस चीज़ से लाभ हो वही बातें बताई और दिखाई जाती हैं। वैसे आप ने जो लिखा है सही लिखा है।
वस्तुस्तिथि की जानकारी से हमें रुबरु कराने के लिए धन्यवाद..........
aap ne sahi likha hai sir aaj pardushan itna badh gaya hai ki loge bhukh se kam bimari se jayad mar rahne hai
इंसान ही ख़ुद का दुश्मन बन गया है.....अपने पैरों पर ख़ुद ही कुल्हाडी मर रहा है....काश उसे पता चल जाता की हम भौतिक चीज़ों से नहीं बल्कि प्रकृति से जिंदा हैं.....बहुत खूब लिखा है......
aapne apni zami ke baare me likha hai...achcha laga...nek soch hai, likhte rahiye
good one buddy
keep it up
thought provoking one
take care
राजीव जी,मुल्क की चिंता हमें भी है...मुमकिन है मेरे ब्लॉग पर आपकी चाँद से आगे नज़र ही नहीं गई....और इतनी आज़ादी तो है हमें...कि अपने ब्लॉग पर जो ख्याल आये उसे कह सकें...। आपका सफर देखा..शब्दों के ज़रिये बयाँ हुई आपकी देशभक्ति भी देखी...काबिलेतारिफ है।
शुक्रिया आपका...आपके सजेशन पर ज़रूर विचार करूँगा.
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