जिस दौर में रहते हैं...
सबसे आगे निकलते हैं।
ऊपर लिखी दो लाइने किसी और ने नही अभी अभी मैंने ही कही है। अपने लिए नही अपने तमाम शहर वासियों के लिए कही है। क्यों कही ये भी आपको बता दू। खनिज में हम सबसे आगे, खेल में भी सबको पछाडे, अख़बार भी कही और का नही अपने शहर का, सबसे पहले सबके दरवाजे पहुचता है। रही बात टेलीविजन की तो उसमे भी हमारा शहर अब सबको चुनौती देगा। बस चंद दिनों का इंतज़ार है। ये 'सफ़र' भी 'रफ़्तार' पकडेगा, और यकीनन सबसे आगे ही चलेगा। चमचमाते चैनलों की रेस में अब रांची भी अपना नाम दर्ज कराने वाला है। जल्द ही हमारे शहर में कुछ चैनल खुल रहे है जिसमे न्यूज़ के साथ-साथ प्रोग्राम भी दिखाए जायेंगे। ये वाकई हमारे लिए गर्व की बात है। ऐसे लोग बधाई के हक़दार हैं, जिन्होंने हम शहर के लोगों को फ़क्र करने का मौका दिया। धन्यवाद ......
2 टिप्पणियां:
हाँ राजीव जी आपके ही शहर में एक चैनल ऐसा भी है, जिसका नाम तो ३६५ दिन है, पर लगता है ,उसे खुलने में ३६५ साल लगेंगे.......
खैर उम्मीद की जानी चाहिये की रांची जैसे कस्बाई शहर में भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ' रफ़्तार ' पकड़े.........
"तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नए अंदाज़ वाला है.... हमारे शहर में भी अब कोई हम सा नही रहता.... मेरे सफ़र का पडाव ऐसे अंजान शहर में आकर रुका है जहाँ के सारे अजनबी मुझे अपने लगते हैं ...शायद अपनों के प्यार का नतीजा है...खुदा करे मैं हमेशा इस सफ़र को जारी रख सकू। वैसे एक बात ज़रूर है दोस्तों, पराये लोगों का अपनापन अपनों से ज़्यादा कशिश लिए होता है।"
...........लेकिन मैंने तो समझा था....हम सब जो यहाँ रहते हैं....उन सबका शहर....देखें तो तुम्हारा.....और समझे तो हमारा.......सच....है ना.....!!
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